सोमवार, 16 जुलाई 2012

जनाब शिक्षक

समाज में आज भी शिक्षकों को खाश तवज्जो दी जाति है /हाँ इसके साथ ही यह कदापि उस व्यक्ति की नहीं बल्कि उसके हुनर और क़ाबलियत को तारीफ मिलती है /लेकिन आज यक़ीनन हुनर ही परेशां है /सरकारी हुकुमरान उनके क़ाबलियत की किस्सा कुछ और ही सुनना या सुनाना चाहते हैं /काबिल लोगों से ऐसे काम लिए जाने लगें हैं /की उनकी अपनी तारीफ ही ख़ुद से शिकायत करने लगें हैं /कंहा बादशाह सलामत उनका खैर मकदम करते थे /और उन्हें ही खैर के लिए परेशां होना पर रहा है /उनका पेशा अपनी मंजिल की तलाश में है/अब कोई मशीहा ही तर्रकी कर उनकी शान लौटा सकता है /
बेचारे शिक्षक अपनी जानिब के लिए परेशां रहते हैं /कोई न तो उनके सलामती का हल पूछता है नही कोई खैर मकदम /उन्हें तन्खवाह की मोटी रकम जरुर मिलती है उनकी शान में कमी खलती है
यह मुल्क के लिए खैरियत का पैगाम नहीं है बल्कि आने वाले नस्ल के लिए परेशानियों का शबब /

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